देह दानी परिवार सम्मान समारोह में उपराष्ट्रपति द्वारा दिए गए संबोधन के प्रमुख अंश
प्रविष्टि तिथि: 18 AUG 2024 1:52PM by PIB Delhi
जैन समाज के मैंने आधा दर्जन से ज्यादा कार्यक्रमों को अटेंड किया है। I can say with confidence that their commitment, their energy, their passion, and their mission—all is for the welfare of society.
मैंने इस समाज की महिलाओं के कार्यक्रम में भी जाकर एक नया अनुभव प्राप्त किया। Their commitment in industry, trade, and commerce exemplifies our civilisational depth.
इदम् शरीरम् परमार्थ साधनम्! यह शरीर समाज के व्यापक लाभ के लिए एक साधन बन सकता है। आप किनकी मदद करोगे? उनकी मदद करोगे जो प्रतिभाशाली हैं, जिनके मन में कुछ कर गुज़रने की भावना है, पर शरीर के एक अंग की वज़ह से वो उसको आगे नहीं बढ़ा पाते हैं।
आप जब उनकी मदद करोगे, इसको एक ऐसा रूप दोगे, वो समाज के liability नहीं, समाज का asset बनेंगे। हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत,आत्महीन सेवा और बलिदान के उदाहरणों से भरी हुई हैं।
Let us bestow some attention on our scriptures, Our Vedas, they are repositories of our wisdom and knowledge.
और उनमें इस बात पर कितना ध्यान दिया गया है। माननीय देवनानी जी ने जो उदारण प्रस्तुत किया है, ऐसे अनेक-अनेक उदारण हैं, अब विश्व के लिए भारत यदि एक उदारण इसमें नहीं बनेगा, तो हमें सोचना पड़ेगा, कि हमारी संस्कृति के प्रति हमारी श्रद्धा में कुछ कमी आई है।
व्यक्ति खर्चीले इलाज के बाद भी ठीक नहीं हो पाता है। परिवार की अर्थव्यवस्था कमजोर हो जाती है, परिवार का मनोबल टूट जाता है। अंगदान एक साधारण, सुलभ उपाय है। अंगदान जितना बढ़ेगा, हमारे यहां उतने सक्षम लोग होंगे। Medical fraternity will rise; Medical fraternity will achieve expertise.
क्या कभी सोचा था कि इस भारत में हर व्यक्ति के पास मोबाइल होगा, कभी नहीं सोचा था। कभी नहीं सोचा था कि मोबाइल यहीं बनेगा, कभी नहीं सोचा था कि मोबाइल का एक्सपोर्ट करेंगे।
किसी ने मोबाइल के उपयोग की तकनीकें किसी को बताई नहीं है पर गाँव का आदमी भी आज सक्षम है कि मोबाइल से financial transaction करता है, सरकारी सहायता लेता है, delivery देता है।
क्यों? क्योंकि मोबाईल उसकी आवश्यकता है उसी तरीके से हम टेलीवीज़न देखते हैं तो रिमोट हमारी आवश्यकता है, अंगदान समाज कि आवश्यकता है।
हमारी संस्कृति क्या कहती है, हजारों साल की संस्कृति है। पूरी दुनिया को हम यह मैसेज दे रहे हैं। इतना सफलतम आयोजन हुआ G20 का। हमने क्या कहा? One Earth, One Family, One Future. हमारी सोच क्या है!
सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥ यह उस भावना का संकेत देता है कि परिवारों में जन्म से यह बात सिखाई जाती है—खून दान, आंखों का दान, त्वचा का दान, लीवर का, किडनी का, मस्तिष्क का। मृतक दाताओं से अंगदान जैसी धारणाएं इसी विस्तृत चिंता का परिणाम हैं।
कहीं न कहीं कुछ रुकावट है। कहीं न कहीं कमजोर पड़ जाते हैं। जाने वाला देना चाहता है पर परिवार थोड़ा सा विचलित हो जाता है। परिवार के मन में कई भावनाएं आती हैं। Time to overcome this mental block because organ donation is spiritual activity. Organ donation is the highest moral exemplification of human nature.
Let a healthy person not exploit, subjected to expectation. उस पैसे के लिए अंगदान ना करे , अंगदान भावना से है। आदमी परेशान है, पीड़ित है। उसको कहते हैं, ‘किडनी दान कर दो, पैसा मिल जाएगा, नौकरी मिल जाएगी।’ यह नहीं होना चाहिए।
We have to overcome it. मेडिकल व्यवसाय में जो एक तरीके से विकार आ गया है, some kind of virus of commercialisation, we have to neutralize it. Medical profession is a godly profession. जो पीड़ित व्यक्ति है, वह डॉक्टर को भगवान मानता है।
Covid के दौरान, हमारे डॉक्टर, नर्स, कंपाउंडर, हेल्थ वॉरियर्स ने दिखा दिया कि खुद के लिए जोखिम लेते हुए हमको बचाया है। उसमें से गिने चुने लोग हैं जो यह विकार फैलाते हैं.
We must expose them; they are heartless and not entitled to our sympathy. We cannot allow organ donation to be an exploitation field of the vulnerable person for commercial gain of wily elements. We have to overcome it
राजनीतिक मतांतर प्रजातंत्र की खूबी है। अलग-अलग विचार रखना प्रजातंत्र के गुलदस्ते की महक है, पर यह तब तक ही है जब राष्ट्रहित को तिलांजलि नहीं दी जाए।
राष्ट्रहित को सर्वोपरि नहीं रखेंगे तो जो यह राजनीतिक मतांतर है, यह राष्ट्रविरोधी बन जाता है। देखने मे अक्सर आता है कि व्यक्ति के हित को, राजनीतिक स्वार्थ को राष्ट्रीय हित से ऊपर रखा जाता है और जिन लोगों ने अच्छे पद ग्रहण किए हैं, बड़े पद ग्रहण किए हैं वो विचारधारा ऐसी project करते हैं जैसे कि इस देश में कुछ भी हो सकता है। हमारा संकल्प होना चाहिए किसी भी हालत में राष्ट्रहित को तिलांजलि नहीं दे सकते।
भारतीयता हमारी पहचान है, भारतीयता में हमारा अटूट विश्वास है और राष्ट्र हमारे लिए सर्वोपरि है और जिनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि नहीं है, राजनीतिक हित को ऊपर रखते हैं, व्यक्तिगत स्वार्थ को ऊपर रखते हैं, उनको हमें समझाना चाहिए। And if they still persist, I urge everyone to neutralise these forces that are pernicious to the growth of this nation. It is a sinister design, we cannot digest क्योंकि जो भारत में हो रहा है जो भारत में विकास यात्रा की गति है। हमने कभी सपना नहीं देखा था 1989 में जब लोकसभा का सदस्य था और केंद्र में मंत्री था।
जो कुछ हो रहा है वह अकल्पनीय है। आज कि पीढ़ी को अंदाज़ा नहीं है, इसीलिए मैं आह्वान करूँगा कि आज की पीढ़ी को संविधान दिवस के ऊपर देखना चाहिए कि संविधान पर खतरा कब आया था।
कुछ लोग कहते हैं कि इमरजेंसी का काला अध्याय चुनाव से खत्म हो गया, नहीं ! आज़ादी को हम भूल नहीं सकते क्योंकि लोगों ने बहुत बड़ी sacrifice दी है और इमरजेंसी के जो अत्याचार हैं, और इसीलिए जो भारत सरकार ने पहल की है- ‘संविधान हत्या दिवस’ , वह हमारी नव-पीढ़ी को आगाह करने के लिए है कि उनको पता लगना चाहिए कि एक ऐसा कालखंड था जिसमें आपके कोई मौलिक अधिकार नहीं थे, सर्वोच्च न्यायालय ने भी हाथ खड़े कर दिए।
कार्यपालिका का तानाशाही रवैय्या ऐसा रहा, इस शिखर पर पहुँच गया कि इतिहास में इसका कोई उदाहरण नहीं मिलेगा। ऐसे हालात नहीं हो सकते पर न होने के पीछे यह भी है कि उसकी जागरूकता हमारे पास हो।
जैन समाज से मेरी एक खास अपील है- हम देश में आयात करते हैं कैंडल का, काइट्स का, खिलौने का, फर्नीचर का, कारपेट का, कपड़ों का। हम आयात नहीं कर रहे हैं, हम हमारे लोगों से कम छीन रहे हैं, हम हमारे उद्यमी को आगे बढ़ने नहीं दे रहे हैं, हम हमारे फॉरेन एक्सचेंज को बाहर भेज रहे हैं। क्या मात्र धन लाभ के लिए इकोनॉमिक नेशनलिज्म, आर्थिक स्वतंत्रता को तिलांजलि दी जा सकती है?
I appeal to corporates, trade associations, business organizations, and business leaders to nurture economic nationalism to promoting by being vocal for local, belive in Swadeshi, and import only that which is unavoidable.
आप कपड़े खरीदने हैं, घर आकर देखते हैं कि ऊपर टैग क्या है—’मेड इन भारत’ का नाम नहीं है। व्यापक संख्या में ऐसा है; सोचिए। और इसी कड़ी में अंतिम बात: हमारे देश का रॉ मैटेरियल, Iron ore हो , चाय हो बिना वैल्यू ऐडिशन के बाहर जा रही है। क्या हम मानते हैं we can’t add value to our raw materials? We can. भारत जैसा देश, जिसकी दुनिया सराहना करती है, उसका रॉ मैटेरियल पोर्ट से जा रहा है और दूसरे देश उसमें वैल्यू ऐड कर रहे हैं। This puts our heads in shame. और यह करने के लिए पूरी जनता की आवश्यकता नहीं है; कुछ चुनिंदा लोगों की आवश्यकता है जो अपने ट्रेड एसोसिएशन के अंदर, organisation concerned with commerce and industry, वहां यह निर्णय लें।