इतिहास में पहली बार — राष्ट्रपति ने संवैधानिक सवालों पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी!
1️⃣ 🛑 इतिहास में पहली बार — राष्ट्रपति ने संवैधानिक सवालों पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी! 🇮🇳⚖️
भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 143(1) के अंतर्गत 14 बेहद अहम संवैधानिक सवाल सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखे हैं,
यह मामला सिर्फ क़ानूनी नहीं, बल्कि भारत के संघीय ढांचे और लोकतंत्र की आत्मा से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट अब इस पर 5 जजों की संविधान पीठ बनाएगा और राय देगा।
जब किसी राज्यपाल को किसी विधेयक को अनुच्छेद 200 के तहत प्रस्तुत किया जाता है, तो उनके सामने कौन-कौन से संवैधानिक विकल्प होते हैं?
क्या राज्यपाल, जब उनके समक्ष कोई विधेयक अनुच्छेद 200 के तहत प्रस्तुत होता है, तब मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे होते हैं?
क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा संवैधानिक विवेकाधिकार का प्रयोग न्यायिक समीक्षा के अधीन है?
क्या भारतीय संविधान का अनुच्छेद 361, अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की कार्यवाहियों पर न्यायिक समीक्षा को पूर्णतः प्रतिबंधित करता है?
यदि संविधान में राज्यपाल के विवेकाधिकार के प्रयोग के लिए कोई समयसीमा और प्रक्रिया निर्दिष्ट नहीं है, तो क्या न्यायालय समयसीमा और प्रक्रिया निर्धारित कर सकता है?
क्या राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 201 के तहत विवेकाधिकार के प्रयोग को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है?
जब संविधान राष्ट्रपति के विवेकाधिकार के लिए कोई समयसीमा या प्रक्रिया नहीं निर्धारित करता, तो क्या न्यायालय ऐसी समयसीमा और प्रक्रिया तय कर सकता है?
क्या जब राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखते हैं, तो राष्ट्रपति को अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेना अनिवार्य है?
क्या अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति के निर्णय, किसी विधेयक के कानून बनने से पहले, न्यायिक समीक्षा के योग्य हैं? क्या न्यायालय किसी विधेयक की सामग्री पर पूर्व-निर्धारण कर सकते हैं?
क्या राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग को अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है?
क्या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कानून, जब तक उसे राज्यपाल की सहमति (अनुच्छेद 200 के तहत) नहीं मिलती, तब तक प्रभावी होता है?
क्या अनुच्छेद 145(3) के प्रावधान के अनुसार, जब कोई मामला संविधान की व्याख्या से संबंधित गंभीर प्रश्न उठाता है, तो क्या सुप्रीम कोर्ट को उसे पांच या अधिक न्यायाधीशों की पीठ को भेजना अनिवार्य है?
क्या अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट की शक्तियाँ केवल प्रक्रिया से संबंधित मामलों तक सीमित हैं, या यह मौलिक या प्रक्रियात्मक कानूनों से विपरीत आदेश देने तक विस्तृत होती हैं?
क्या संविधान यह निषेध करता है कि केंद्र और राज्यों के बीच विवाद केवल अनुच्छेद 131 के तहत दायर वाद द्वारा ही निपटाए जा सकते हैं, या क्या सुप्रीम कोर्ट के पास किसी अन्य प्रकार के अधिकार क्षेत्र भी हो सकते हैं?