पदोन्नति अपने आप में कोई मौलिक अधिकार नहीं, पदोन्नति केवल कार्यभार ग्रहण करने पर ही प्रभावी – सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि ‘पदोन्नति केवल कार्यभार ग्रहण करने पर ही प्रभावी होती है, न कि पद रिक्त होने या सिफारिश की तारीख से। शीर्ष अदालत ने कहा है कि सेवानिवृति के बाद पदोन्नति पूर्वव्यापी रूप से नहीं दी जा सकती क्योंकि इसके लिए पदोन्नति पद के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को वास्तव में ग्रहण करने की जरूरत होती है।
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और संदीप मेहता की पीठ ने कोलकाता उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार और अन्य की ओर से दाखिल अपील का निपटारा करते हुए यह फैसला दिया है। उच्च न्यायालय ने फरवरी, 2023 में पश्चिम बंगाल प्रशासनिक न्यायाधिकरण के उस फैसले को सही ठहराया था, जिसमें कहा गया था कि एक व्यक्ति, जो अपनी सेवानिवृति के बाद पूर्वव्यापी पदोन्नति का हकदार नहीं है, को 31 दिसंबर, 2016 की उसकी सेवानिवृति की तारीख तक मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी के पदोन्नति पद के लिए काल्पनिक वित्तीय लाभ दिए जाने जाने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने ‘अब अपने फैसले में कहा है कि कानून का यह स्थापित सिद्धांत है कि पदोन्नति पद रिक्त होने या पद सृजित होने की तिथि से नहीं, बल्कि पद ग्रहण करने की तारीख से प्रभावी होती है। साथ ही कहा है कि ये सही है कि संवैधानिक अदालतों ने पदोन्नति के लिए विचार किए जाने के अधिकार को न केवल वैधानिक अधिकार बल्कि मौलिक अधिकार के रूप में भी मान्यता दी है, लेकिन पदोन्नति अपने आप में कोई मौलिक अधिकार नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा है कि पश्चिम बंगाल सेवा नियमों के नियम 54(1)(ए) के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि सेवानिवृति के बाद पदोन्नति पूर्वव्यापी रूप से नहीं दी जा सकती, क्योंकि इसके लिए पदोन्नति पद के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को वास्तव में ग्रहण करने की जरूरत होती है। पीठ ने कहा है कि जहां तक मौजूदा मामले का सवाल है तो चूंकि वह व्यक्ति अपनी पदोन्नति की अंतिम मंजूरी से पहले ही सेवानिवृत हो चुका था, इसलिए वह औपचारिक रूप से पदोन्नति के पद का कार्यभार नहीं संभाल सकता था।
शीर्ष अदालत ने कानूनी का हवाला देते हुए कहा कि यह स्थापित करता है कि पदोन्नति केवल पदोन्नति के पद पर कर्तव्यों के ग्रहण करने पर ही प्रभावी होती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह देखते हुए कि वह अपनी पदोन्नति के प्रभावी होने से पहले सेवानिवृत हो गया था, इसलिए वह पदोन्नति के पद से जुड़े पूर्वव्यापी वित्तीय लाभों का हकदार नहीं था क्योंकि उसने उस क्षमता में सेवा नहीं की थी। यह टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय और प्रशासनिक न्यायाधिकरण के फैसले को पलट दिया।
प्रतिवादी व्यक्ति (अधिकारी) की ओर से पेश वकील ने शीर्ष अदालत में कहा था कि उनके मुवक्किल 24 मार्च, 2008 से प्रमुख वैज्ञानिक अधिकारी के रूप में सेवा कर रहा था, और यदि विभाग ने रिक्ति को भरने के लिए समय पर प्रस्ताव पेश किया होता तो उसे 2013 में मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी के रूप में पदोन्नत किया जा सकता था।