राणा सांगा, जिनका पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह था, मेवाड़ के महान योद्धा और शासक थे। उनका जन्म 12 अप्रैल 1482 को हुआ था। वे सिसोदिया राजवंश के शासक थे और अपनी वीरता, युद्ध कौशल और रणनीतिक सूझबूझ के लिए प्रसिद्ध थे।
युद्ध कौशल और वीरता
राणा सांगा ने अपने जीवन में कई युद्ध लड़े और अपने दुश्मनों को कड़ी टक्कर दी। वे दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी, गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह, और मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी के खिलाफ सफलतापूर्वक लड़े। उनकी शारीरिक अपंगता भी उनके साहस को कम नहीं कर सकी—वे एक हाथ, एक पैर और कई घावों के बावजूद युद्ध में डटे रहते थे।
बाबर से युद्ध
राणा सांगा की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई 1527 में खानवा के युद्ध में हुई, जब उन्होंने मुगल शासक बाबर के खिलाफ मोर्चा संभाला। यह युद्ध हिंदुस्तान के भविष्य के लिए निर्णायक था। प्रारंभ में, राणा सांगा की सेना ने मुगलों पर भारी दबाव बनाया, लेकिन बाबर की रणनीति और तोपखाने की शक्ति के कारण यह युद्ध मेवाड़ के पक्ष में नहीं रहा।
उत्तराधिकार और विरासत
राणा सांगा की मृत्यु 30 जनवरी 1528 को हुई। वे एक महान योद्धा और कुशल रणनीतिकार थे, जिन्होंने राजपूताना की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उनकी वीरता और संघर्ष आज भी राजपूत परंपरा का गौरव हैं।
निष्कर्ष
राणा सांगा भारतीय इतिहास के सबसे पराक्रमी योद्धाओं में से एक थे। उनका जीवन संघर्ष, वीरता और साहस की मिसाल है। उनका नाम हमेशा वीरता और राष्ट्रभक्ति के प्रतीक के रूप में लिया जाता रहेगा।