सभी आपदा प्रभावितों को दे विशेष आर्थिक पैकेज के तहत मदद : जयराम ठाकुर
हमने आपदा के बाद ही मुख्यमंत्री से विशेष पैकेज देने का किया था निवेदन
केंद्र के द्वारा एडवांस मदद करने के बाद भी सरकार ने लगाया चार महीने का समय
हाई कोर्ट की रोक के बाद भी बागवानी विकास परियोजना के दफ्तर क्यों लटकाए हैं ताले
शिमला: नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा समेज और बागी पुल के आपदा प्रभावितों को विशेष आर्थिक पैकेज दिए जाने का फैसला सरकार द्वारा बहुत देर से किया गया। जबकि केंद्र सरकार द्वारा इस बार हिमाचल प्रदेश को आपदा राहत के तहत जारी किए जाने वाला फंड एडवांस ही दे चुकी थी। हादसे के बाद ही हमने मांग की थी कि सामान्य मदद से कुछ नहीं होने वाला है। लोगों का बहुत नुकसान हुआ है। लोगों का सब कुछ बर्बाद हो गया है। इस आपदा के जख्म भरने में बहुत वक्त लगेगा। ऐसे में सरकार प्रदेश में इस मानसून में हुई भीषण तबाही पर आपदा के प्रभावितों को विशेष आर्थिक पैकेज के तहत ही मदद करें। राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार इस बार के मानसून मौसम के दौरान प्रदेश भर में 101 से ज्यादा घटनाएं हुई है जिसमें भारी संख्या में जन-धन की हानि हुई है। ऐसे में सभी प्रभावितों को विशेष पैकेज के तहत एक समान राहत राशि वितरित की जाए। क्योंकि आपदा में किसी भी प्रकार प्रभावितों के साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि आपदा के तुरंत बाद ही प्रभावितों के तुरंत बाद ही राहत, बचाव कार्य और पुनर्वास के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए। लेकिन सरकार ने आर्थिक पैकेज की घोषणा करने में ही 4 महीने का समय लगा दिया। अभी भी प्रदेश के सभी आपदा प्रभावितों को विशेष आर्थिक पैकेज देने की घोषणा नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि आपदा प्रभावितों को जल्दी से जल्दी सभी सुविधाएं दी जाएं और दरकार द्वारा जो घोषित किया गया है वह उन्हें समयबद्ध मिले। अगर सरकार ने हमारी बात सुनी होती तो आपदा प्रभावितों को बहुत पहले प्रभावी मदद मिल चुकी होती। इस मानसून के दौरान राज्य में बादल फटने व बाढ़ की कुल 54 घटनाएं हुई, जिसमें कुल 65 लोगों की जान गई है। जिसमें से 33 लोग अभी तक लापता है। इसके अतिरिक्त इस बार मानसून सीजन में भूस्खलन की कुल 47 घटनाएं भी हुईं। जिससे भी भारी जन-धन की हानि हुई।
हाई कोर्ट की रोक के बाद भी बागवानी विकास परियोजना के दफ्तर क्यों लटकाए हैं ताले?
जयराम ठाकुर ने कहा कि बागवानी विकास परियोजना में कार्यरत कर्मचारियों को सरकार हटाना चाहती है जिस पर हाई कोर्ट द्वारा यथा स्थिति बनाने का आदेश दिया गया है। योजना के कर्मचारी इस संबंध में मुझे दो बार मिल चुके हैं और उन्होंने बताया कि कोर्ट द्वारा यथा स्थिति बनाने के आदेश दिए जाने के बाद भी उन्हें अटेंडेंस रजिस्टर पर दस्तखत नहीं करने दिए जा रहे हैं, बायोमेट्रिक मशीन हटा दी गई है। ऑफिस में ताले जड़ दिए गए हैं और उन्हें तरह-तरह से धमका कर चार्ज हैंड ओवर करने का दबाव बनाया जा रहा हैं। माननीय न्यायालय के स्पष्ट रोक के बाद भी यह सरकार कर्मचारियों को इस तरह परेशान कर रही है यह बात समझ के परे है। सुक्खू सरकार के अधिकारी और मंत्री न तो आम जनता की भावना समझ रहे हैं, न कर्मचारियों की बात सुन रहे हैं और न ही माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान कर रहे हैं? सरकार इस तरह कैसे कम कर सकती है? न्यायालय के आदेशों की ऐसी अवहेलना कैसे कर सकती है? क्या मुख्यमंत्री प्रदेश को तानाशाही से चलाना चाहते हैं? क्या मुख्यमंत्री के अपने प्रावधान देश के संविधान और न्यायालय से बड़े हो गए हैं? इसका जवाब उन्हें अवश्य देना होगा l।