हिमाचल प्रदेश को बजट से ज्यादा 16वें वित्तायोग की चिंता
रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट बचाने के लिए आयोग के संपर्क में अफसरशाही
भारत सरकार के आम बजट में बिहार की तरह हिमाचल का नाम बेशक न आया हो, लेकिन राज्य सरकार को बजट से ज्यादा 16वें वित्त आयोग की चिंता है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि हिमाचल में सरकारों की निर्भरता राजस्व घाटा अनुदान यानी आरडीजी पर रहती है। 14वें वित्त आयोग के पांच साल की अवधि में 2015 से 2020 के बीच हिमाचल को 40,624 करोड़ राजस्व घाटा अनुदान के तौर पर मिले थे। इसके बाद 15वें वित्त आयोग ने 2021 से 2026 तक 37,199 करोड़ रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में तो दिए, लेकिन इसे हर साल घटती राशि में डाल दिया था। इस कारण वर्ष 2021-22 में 10,249 करोड़ की ग्रांट मिली, जबकि अब अंतिम वर्ष यानी 2025-26 में सिर्फ 3257 करोड़ की ग्रांट मिलेगी। ऐसा इसलिए किया गया था, क्योंकि वित्त आयोग ने हिमाचल को ग्रांट पर अपनी निर्भरता कम करने का टास्क दिया था, लेकिन हिमाचल में सब इसके विपरीत हो गया और अब राज्य सरकार का लोन ही एक लाख करोड़ से ऊपर चला गया है। ऐसे में वर्ष 2026 से शुरू हो रहे 16वें वित्त आयोग ने यदि राजस्व घाटा अनुदान को बढ़ाया नहीं, तो राज्य के लिए आर्थिक चुनौतियां और कड़ी हो जाएंगी।
इसीलिए राज्य सरकार के अफसर वित्त आयोग में काम के अधिकारियों के संपर्क में हैं। राज्य सरकार ने अपने कर्मचारियों को चुनावी वादे को पूरा करते हुए ओल्ड पेंशन स्कीम दी है। इस स्थिति और फॉर्मेट पर ओपीएस देने वाला हिमाचल देश में अकेला राज्य है। दूसरी तरफ महिलाओं को 1500 रुपए देने की शुरुआत भी जून, 2024 में ही हुई थी। इन दो फैसलों को वित्त आयोग किस तरह से लेगा, इस पर राज्य की ग्रांट निर्भर करेगी। हिमाचल दौरे के दौरान हालांकि वित्त आयोग ने बिना बजट खोले गए संस्थान बंद करने के फैसले का स्वागत किया था।