सीडीएससीओ की सख्ती से हिला हिमाचल का फार्मा हब, केंद्र की कठोर नीतियों ने तोड़ी छोटे दवा उद्योगों की कमर
सीडीएससीओ की सख्ती से हिला हिमाचल का फार्मा हब, केंद्र की कठोर नीतियों ने तोड़ी छोटे दवा उद्योगों की कमर
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) की हालिया सख्ती और केंद्र की कठोर नीतियों ने छोटे दवा निर्माताओं की रीढ़ तोड़ दी है। एशिया का फार्मा हब कहलाने वाला हिमाचल भी अब इस दबाव से डगमगाने लगा है। हालात से आक्रोशित ज्वॉइंट फोरम ऑफ फार्मास्यूटिकल एमएसएमई जिसमें देश भर के 21 संघठनो ने दो टूक चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने हस्तक्षेप नहीं किया, तो उद्योग सरकार और जनता का ध्यान आकर्षित करने के लिए दो दिन का राष्ट्रव्यापी उत्पादन बंद करने के लिए विवश हो जाएंगे। ज्वाइंट फोरम ऑफ फार्मास्यूटिकल एमएसएमई ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को ज्ञापन भेजकर कहा है कि मौजूदा नीतियां और रोजाना जारी हो रहे सर्कुलर छोटे उद्योगों के लिए असहनीय हो चुके हैं। ज्ञापन में फोरम ने कहा है कि एमएसएमई इंडस्ट्री को अपनी क्षमता साबित करने का मौका मिलना चाहिए, लेकिन लगभग हर दिन जारी होने वाले नए नियम व्यापार सुगमता की अवधारणा को खत्म कर रहे हैं।
फार्मा एमएसएमई देश की 65 फीसदी फॉर्मुलेशन सप्लाई करते हैं और 220 से अधिक देशों में सस्ती दवाओं का निर्यात कर रहे हैं, जिनसे भारत की साख बनी हुई है। सबसे गंभीर समस्या बायो इक्विवेलेंस अध्ययन को लेकर है। तीन अप्रैल, 2017 की अधिसूचना (जीएसआर 327.ई) को नौ साल बाद 11 सितंबर, 2025 से लागू कर दिया है, जिसके तहत पुरानी और दशकों से स्वीकृत दवाओं पर भी महंगे मानव अध्ययन अनिवार्य कर दिए गए हैं। प्रति दवा 25 से 50 लाख रुपए की लागत छोटे उद्योगों की पहुंच से बाहर है और देशभर की लगभग 10500 इकाइयों पर यह आदेश कमर तोडऩे सरीखा है। ज्ञापन में एनडीसीटी नियम 2019 के विस्तार पर भी गंभीर आपत्ति जताई गई है