पटवारी, फॉरेस्ट गार्ड और पंचायत सचिवों को मिलेगी विशेष ट्रेनिंग: किन्नौर में जगी अधिकारों की नई आस
पटवारी, फॉरेस्ट गार्ड और पंचायत सचिवों को मिलेगी विशेष ट्रेनिंग: किन्नौर में जगी अधिकारों की नई आस
रिकांगपिओ, हिमाचल प्रदेश
पहाड़ों की शांत वादी किन्नौर के रिकांगपिओ में आज एक नई सुबह की उम्मीद जगी। मौका था वन अधिकार अधिनियम-2006 पर आयोजित एक महत्वपूर्ण बैठक का, जिसकी अध्यक्षता कैबिनेट मंत्री श्री जगत सिंह नेगी कर रहे थे। इस बैठक में एक ऐसा ऐलान हुआ जो दूर-दराज के गांवों में बसे उन लोगों के लिए आशा की किरण लेकर आया, जो दशकों से अपनी जमीन पर अपने हक़ का इंतज़ार कर रहे हैं।
मंत्री जगत नेगी ने घोषणा की, “प्रदेश सरकार जल्द ही पटवारियों, फॉरेस्ट गार्डों और पंचायत सचिवों के लिए एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करेगी।” उन्होंने कहा कि इस ट्रेनिंग का मुख्य उद्देश्य इन तीनों विभागों के जमीनी स्तर के कर्मचारियों के बीच बेहतर तालमेल बनाना है, ताकि वन अधिकार अधिनियम के तहत मिलने वाले दावों की प्रक्रिया में तेजी लाई जा सके।
क्यों पड़ी इस ट्रेनिंग की ज़रूरत?
यह कहानी सिर्फ एक सरकारी घोषणा की नहीं, बल्कि 70 वर्षीय श्याम सिंह जैसे अनगिनत लोगों की है। श्याम सिंह पीढ़ियों से जंगल की एक छोटी सी भूमि पर खेती करते आ रहे हैं, लेकिन आज तक उनके पास उस जमीन का मालिकाना हक़ नहीं है। उन्होंने कई बार आवेदन किया, लेकिन हर बार उनका आवेदन राजस्व विभाग (पटवारी), वन विभाग (फॉरेस्ट गार्ड) और पंचायत के बीच उलझकर रह गया।
मंत्री नेगी ने इसी समस्या की नब्ज पकड़ते हुए कहा, “वन अधिकार अधिनियम-2006 तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार की एक ऐतिहासिक देन है, जो हमेशा से निर्धन और उपेक्षित वर्गों के कल्याण के लिए समर्पित रही। कांग्रेस सरकार का लक्ष्य सभी वर्गों का समान विकास सुनिश्चित करना है, न कि लोगों को बांटने की राजनीति करना।” उन्होंने जोर देकर कहा कि इस कानून को सही मायने में लागू करने के लिए यह ज़रूरी है कि प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया जाए।
ट्रेनिंग से क्या बदलेगा?
इस विशेष ट्रेनिंग के बाद, श्याम सिंह जब अपना दावा लेकर पंचायत सचिव के पास जाएंगे, तो उन्हें पूरी जानकारी मिलेगी। पंचायत सचिव को पता होगा कि फॉरेस्ट गार्ड से रिपोर्ट कैसे लेनी है और पटवारी से राजस्व रिकॉर्ड का मिलान कैसे करवाना है।
बेहतर समन्वय: तीनों विभागों के कर्मचारी एक-दूसरे की कार्यप्रणाली को समझेंगे, जिससे दावों की फाइलें एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर के चक्कर नहीं काटेंगी।
समय पर कार्यवाही: प्रशिक्षण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी दावे समयबद्ध सीमा के अंदर उच्च अधिकारियों तक पहुंचें।
अधिकारों के साथ शर्तें भी
जनजातीय विकास मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि इस अधिनियम का लाभ केवल उन्हीं को मिलेगा जो इसकी पात्रता रखते हैं। उन्होंने कहा, “अधिनियम के तहत पात्रता उन्हीं को मिलेगी, जिनका वन भूमि पर पहला कब्जा 13 दिसंबर, 2005 से पहले का है।”
इसके अलावा, उन्होंने ग्राम सभा की शक्तियों पर भी प्रकाश डाला। किसी भी प्रोजेक्ट के लिए वन भूमि का हस्तांतरण करने से पहले, ग्राम सभा में 50 प्रतिशत कोरम के साथ अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC) लेना अनिवार्य होगा। साथ ही, वन अधिकार समिति में कम से कम 10 सदस्य होंगे, जिनमें एक तिहाई महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी, ताकि फैसले समावेशी हों।
बैठक का सफल संचालन उपायुक्त किन्नौर, डॉ. अमित कुमार शर्मा ने किया। इस महत्वपूर्ण अवसर पर जिला परिषद उपाध्यक्ष प्रिया नेगी सहित कई अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे, जिन्होंने इस पहल का स्वागत किया।
यह घोषणा किन्नौर के उन लोगों के लिए एक नई उम्मीद है, जिनके लिए जंगल सिर्फ संसाधन नहीं, बल्कि उनकी पहचान और जीवन का आधार है। अब उन्हें उम्मीद है कि यह विशेष ट्रेनिंग फाइलों में दबी उनकी हक़ की आवाज़ को बाहर लाएगी और उन्हें वह सम्मान और अधिकार दिलाएगी जिसके वे हक़दार हैं।