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कार्बन टैक्स बनाम व्यापार: क्या भारत जलवायु प्रतिबद्धताओं और व्यापारिक हितों को संतुलित कर सकता है?

कार्बन टैक्स बनाम व्यापार: क्या भारत जलवायु प्रतिबद्धताओं और व्यापारिक हितों को संतुलित कर सकता है?

निशान्त

हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यूरोपीय संघ (EU) के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) को “एकतरफा और अनुचित” करार दिया. उनका कहना है कि यह नियम भारतीय उद्योगों के लिए हानिकारक है और इससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार में असंतुलन पैदा होगा. उन्होंने यह भी साफ किया कि CBAM जैसे मुद्दे भारत और EU के बीच चल रही मुक्त व्यापार समझौता (FTA) वार्ताओं को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे, लेकिन यह चिंता का विषय जरूर है. तो, CBAM आखिर है क्या, और भारत के लिए इसका क्या मतलब है?

क्या है CBAM?

सीधे शब्दों में कहें, CBAM यूरोपीय संघ का एक नया टैक्स है, जो उन देशों से आने वाले उत्पादों पर लगाया जाएगा जहां पर कार्बन उत्सर्जन नियंत्रण के कड़े नियम नहीं हैं. इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि अगर कोई देश अपनी उत्पादन प्रक्रियाओं में ज्यादा कार्बन उत्सर्जित कर रहा है, तो उसे EU के पर्यावरणीय मानकों से मेल खाने के लिए अतिरिक्त शुल्क देना पड़ेगा. यह नियम मुख्य रूप से स्टील, एल्यूमिनियम, और सीमेंट जैसे उच्च-उत्सर्जन उत्पादों पर लागू होगा, जिनका भारत से EU को निर्यात भी होता है.

क्या है भारत पर इसका असर?

भारत के लिए CBAM सीधा प्रभाव डाल सकता है. भारतीय स्टील और एल्यूमिनियम उद्योग, जो EU को हर साल करीब 8 बिलियन डॉलर का निर्यात करते हैं, इसकी चपेट में आ सकते हैं. अगर CBAM के तहत इन उत्पादों पर 20-35% तक का अतिरिक्त टैक्स लग जाता है, तो भारतीय उत्पादों की कीमतें बढ़ जाएंगी और यह यूरोपीय बाजार में हमारी प्रतिस्पर्धा को कमजोर कर सकता है. इससे न केवल भारतीय उद्योगों पर दबाव बढ़ेगा, बल्कि वैश्विक व्यापार में असंतुलन भी पैदा होगा.

जलवायु और व्यापार के बीच संतुलन

भारत ने पिछले कुछ सालों में जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. हमारी सौर ऊर्जा पहलें और अक्षय ऊर्जा में निवेश इसका उदाहरण हैं. लेकिन CBAM जैसे नियम एक तरह से विकासशील देशों पर ‘जलवायु-कर’ थोपते हैं, जो पहले से ही विकास और रोजगार सृजन जैसी चुनौतियों से जूझ रहे हैं. वित्त मंत्री ने बिल्कुल सही कहा कि यह एकतरफा नियम हैं जो भारत जैसे देशों के हितों को नजरअंदाज करते हैं.

तो भारत क्या कर सकता है?

भारत के पास कुछ ठोस विकल्प हैं:

1. नए बाजारों की तलाश: भारत को अपने निर्यात बाजारों में विविधता लानी होगी. एशिया, अफ्रीका, और लैटिन अमेरिका जैसे नए बाजारों में अपने उत्पादों को पहुंचाना एक अच्छा विकल्प हो सकता है, जिससे हम EU पर निर्भरता कम कर सकते हैं.

2. घरेलू कार्बन क्रेडिट सिस्टम: भारत अपने घरेलू उद्योगों को सशक्त बनाने के लिए एक कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग सिस्टम विकसित कर सकता है. इससे भारतीय उद्योग धीरे-धीरे उन मानकों के अनुरूप ढल सकते हैं जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में आवश्यक होते जा रहे हैं.

3. मुक्त व्यापार समझौते (FTAs): भारत को EU और अन्य देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों में CBAM जैसे नियमों को ध्यान में रखते हुए अपने हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी.

4. स्वच्छ उत्पादन पर जोर: दीर्घकालिक दृष्टि से, हमें स्वच्छ उत्पादन प्रक्रियाओं में निवेश करना होगा. इससे हम न केवल CBAM जैसे करों से बच सकते हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में भी मजबूत स्थिति बना सकते हैं.

चलते चलते

CBAM का मुद्दा सिर्फ व्यापार का नहीं, बल्कि जलवायु और विकास के बीच संतुलन का है. भारत जैसे विकासशील देशों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे अपने उद्योगों और रोजगार के अवसरों की रक्षा करते हुए वैश्विक जलवायु प्रतिबद्धताओं का पालन कर सकें. इसके लिए एक संतुलित और रणनीतिक दृष्टिकोण की जरूरत है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की चिंताएं बिल्कुल जायज हैं, और अब समय आ गया है कि भारत वैश्विक मंच पर इस मुद्दे पर अपनी आवाज और मजबूत करे.भारत को जलवायु और व्यापारिक हितों के बीच सामंजस्य बनाते हुए एक ऐसा रास्ता अपनाना होगा, जो हमें आर्थिक प्रगति के साथ-साथ पर्यावरणीय जिम्मेदारी के पथ पर भी अग्रसर रखे. यह संघर्ष सिर्फ टैक्स का नहीं, बल्कि एक टिकाऊ और समावेशी भविष्य का है.

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