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January 9, 2025
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चयन आयोगों में नियमों के चक्रव्यूह में फंसते नौजवान

चयन आयोगों में नियमों के चक्रव्यूह में फंसते नौजवान
वैसे तो हर राज्य का चयन आयोग, संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की भांति कार्य करता है जिसका मूल उददेश्य बेहतरीन उम्मीदवार का चयन करके सरकार के कामकाज के लिए नियुक्त करना है, जो लोक सेवा के लिए बेहद जरूरी है। लेकिन पिछले दिनों कुछ ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जिनसे शिक्षित नौजवानों का व्यवस्था के प्रति अविश्वास पैदा हुआ है। इस अविश्वास को दूर करने और व्यवस्था में सुधार के लिए ऐसी बहस छिड़े जो पढ़े-लिखे बुद्धिमान, सर्वश्रेष्ठ युवाओं को देश सेवा में पारदर्शी नियुक्ति होने का रास्ता खोले

डा. रचना गुप्ता
हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग (एचपीपीएससी) में प्रशासनिक सेवा की लिखित परीक्षा के बाद इस सप्ताह इंटरव्यू शुरू हो रहे हैं। सभी अभ्यर्थियों को पूरी तैयारी और हौसले के साथ इंटरव्यू में शामिल होना चाहिए। शिक्षित बेरोजगारों की बढ़ती फौज के बीच जीवन में इस तरह के अवसर बार-बार नहीं मिलते। मेरा इस आलेख को लिखने का मूल मकसद सामयिक है जो व्यवस्थागत खामियों को दुरुस्त करने के लिए जरूरी भी है। इस आलेख को पढ़ने से कुछ लोगों को असहजता महसूस हो सकती है और विवाद के बीच कई प्रतिक्रियाएं खराब भी हो सकती हैं। लेकिन मेरा हमेशा से यही मानना रहा है कि अगर जनहित के किसी नेक काम की वजह से आलोचनाएं भी झेलनी पड़ें तो उनकी परवाह नहीं करनी चाहिए। मेरा मकसद है व्यवस्था में सुधार के लिए ऐसी बहस छिड़े जो पढ़े-लिखे बुद्धिमान, सर्वश्रेष्ठ युवाओं को देश सेवा में पारदर्शी नियुक्ति होने का रास्ता खोले।
वैसे तो हर राज्य का चयन आयोग, संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की भांति कार्य करता है जिसका मूल उददेश्य बेहतरीन उम्मीदवार का चयन करके सरकार के कामकाज के लिए नियुक्त करना है, जो लोक सेवा के लिए बेहद जरूरी है। ताजा उदाहरण बिहार में उपजे विवाद का लिया जाए या फिर हिमाचल में पुलिस भर्ती पेपर लीक, पटवारी पेपर लीक, चयन आयोग पेपर लीक जैसे मामले शिक्षित और ईमानदार नौजवानों में व्यवस्था के प्रति अविश्वास की भावना पैदा करते हैं। इस तरह की घटनाएं सरकार की इन संस्थानों के प्रति गैर संवेदनशील भावना को दर्शाती हैं। चयन आयोगों में नियमों के चक्रव्यूह में फंसते युवा और उठते विवादों का कहीं अंत नहीं दिख रहा।
अगर हिमाचल प्रदेश की बात करें तो यहां राज्य लोक सेवा आयोग की भर्ती प्रक्रिया बेदाग रही है। यहां जिक्र उन परीक्षाओं का हो रहा है जो तीन चरणों में होती हैं और महत्वपूर्ण हैं। वे हैं- एचएएस व एचजेएस परीक्षा। यानी जो हिमाचल राज्य सेवा (एचपीएस) में चुने गए युवा हैं और वे आगे जा कर आईएएस भी बनेंगे और प्रधान सचिव या एसीएस रैंक तक भी जाएंगे। यानी यूपीएससी में चयन न हो तो एचएएस से आईएएस बनने का एक अलग रूट है। यह परीक्षा यूपीएससी में आईएएस न बन पाने का एक रास्ता है। जो आपको प्रदेश से होकर आईएएस बनाता है। हर वर्ष इस परीक्षा के लिए 50 से 70 हजार कैंडिडेट परीक्षा का फार्म भरते हैं। दिन-रात कोचिंग लेकर या खुद पढ़कर सालों साल प्रयत्न करते हैं। लिखित परीक्षा भी काफी लोग क्लीयर करते हैं। जो कट आफ में आ गए वह भाग्यशाली मेन एग्जाम में बैठते हैं और जो मेन की मैरिट में टॉप पर आए, उनमे औसतन एक पोस्ट के लिए तीन या चार लोग इंटरव्यू में बैठते हैं।
इंटरव्यू में सिर्फ अध्यक्ष ही क्यों?
अब सोचिए कई बार या बार-बार, कई लोग इंटरव्यू तक आ गए और फिर वह चयन से छूट गए या एचएएस की जगह एचपीएस का निम्न रैंक पर आए तो क्या हालत होगी? और ऐसा होना तय है। कुल मिलाकर देखें तो 20 में से 15 उम्मीदवारों को अपनी यह हार झेलना ही पड़ेगी। इसके लिए बड़ा मन रखना पड़ेगा, निराश भी नहीं होना होगा। हालांकि केवल मात्र आयोग के सदस्य होने भर से परीक्षा प्रणाली में किसी सदस्य का अकेले बस नहीं चलता। मूल निर्णय कुछ लोगों के ही हाथ में होता है, जिसका विवरण अन्यों को नहीं दिया जाता क्योंकि इसमें सीक्रेसी नाम की परत चढ़ा दी जाती है या नियमों में ऐसा प्रबंधन कर दिया जाता है, जो भेदा नहीं जा सकता। मेरी कुछ राज्यों के आयोग के महत्वपूर्ण लोगों से बात होती रही। वहां के नियमों को पढ़ा भी है। कहीं पर भी प्रशासनिक सेवा के साक्षात्कार में फैसला आयोग के ’एकमात्र’ व्यक्ति पर नहीं होता। यानी इंटरव्यू में अधिकतर जगहों पर पूरा कमीशन बैठता है। विभाग के उच्च अधिकारी-प्रतिनिधि लगभग प्रत्येक दिन बदलते जाते हैं।
यूपीएससी में तो कई बार ऐसे मामले भी सामने आए हैं जब ऐसे महत्वपूर्ण इंटरव्यू अध्यक्ष लेते ही नहीं हैं। एक मनोवैज्ञानिक और बाहरी एक्सपर्टस के अलावा पूरा कमीशन इंटरव्यू लेते हुए अपने ढंग से, नंबरों का आकलन करता है। पर हिमाचल प्रदेश में इस व्यवस्था को कई सालों से खत्म कर दिया गया जिसमें पूरा कमीशन एक साथ इंटरव्यू लेता हो। इस बारे में कई बार आयोग में लिखित तौर पर अपनी बात कई सदस्यों ने कही है कि महज 10-12 पदों के लिए रखे एचएएस साक्षात्कारों में यूपीएससी या अन्य कमीशनों की तर्ज पर कार्य होना चाहिए ताकि हर बात की पारदर्शिता हो। आयोग में इस विषय पर हुए पत्राचार पर कोई प्रतिक्रिया या उत्तर क्यों नहीं आता? इस सवाल पर हैरत जरूर होती है।
सवाल जो निरुत्तर हैं!
कभी यह भी हैरानी होती है कि सदस्यों में या चेयरमैन के पदों पर सरकारें केवल नौकरशाहों या मिलती जुलती सेवाओं से ही लोग क्यों लेती है? कई बार तो ऐसा भी होता है कि कॉरेस्पोंडेंस कॉलेज से डिग्रियां लिए लोग, बेहद बुद्धिमान व योग्य लोगों के एग्जाम सिलेबस बनाकर इंटरव्यू लेते हैं। कई बार तो यह भी होता है कि सीक्रेसी में जो लोग परीक्षा व्यवस्था या एक्सपर्ट का चयन करते हैं, वह खुद बमुश्किल थर्ड डिवीजनर होते हैं। जिन्होंने कभी भी कोई बड़ी परीक्षा पास नहीं की होती। या फिर आयोग का एक ही कर्मचारी, एक ही एग्जाम ब्रांच से जुड़ा क्यों होता है? इन सभी का कभी भी तबादला हो ही नहीं सकता? दूसरे विभागों से मर्ज कर्मी, आयोग में दो-तीन दशकों से एक ही तरह के काम से जुड़े क्यों रहते है? फिर डेढ़ साल, दो साल, या 9 महीने के लिए आए सदस्यों का आना, महज मजाक भर है? एडमिनिस्ट्रेटिव डिपार्टमेंट की नजर इस पर क्यों नहीं पड़ती? शायद वह इस सिस्टम के इल्म को समझना नहीं चाहते या सिस्टम का परिवर्तन चाहते ही नहीं।
सरकार व आयोग में मंथन क्यों नहीं?
कभी कभार तो मन कुंठित हो उठता था कि कई पुराने अफसरों को अपने विभागों के इतर इतनी भी जानकारी नहीं होती थी कि वह अपने प्रश्नों में बदलाव ला सकें, प्रश्नों का दोहराव रोक सकें। जो महकमा हाथ में रहा, उन्हीं स्कीमों के प्रश्न पूछे जाते। वहां इंटरव्यू चेयर पर बैठा उम्मीदवार गजब तैयारी के साथ आता है। लेकिन 10 दिनों तक चलने वाले इंटरव्यू एक-दो चिन्हित लोग ही लगातार लें, व्यवस्था को बदलने को मजबूर करता है, मगर होता नहीं। यह भी हैरत होती है की कि आयोग में कर्ता-धर्ता अधिकारियों व कर्मचारियों के रिलेटिव भी एग्जाम में बैठते हैं। परन्तु, जिस प्रक्रिया को चलाने का जिम्मा जिन पर हो, वह उसी दफ्तर में जिम्मेदारी से कैसे अलग हो सकते हैं? सरकार व आयोग में इस बारे कभी मंथन नहीं होता। यानी प्रदेश की सबसे बड़ी परीक्षा एचएएस में आयोग की पूरी टीम की भूमिका महज निकले आखिरी नतीजों पर एक हस्ताक्षर भर की है। पूरा कमीशन पहले के सालों की भांति एचएएस व एचजेएस की इंटरव्यू टीम में शामिल रहता था।
जो हो नहीं सका!
सीक्रेसी के नाम पर एक व्यक्ति का एकछत्र अधिकार नहीं होगा। विभागीय विशेषज्ञ बार-बार वही नहीं दोहराए जाएंगे। पेपर सेट करवाने वाले आयोग के कर्मी व अधिकारी उच्चतम शिक्षा की डिग्री लिए होंगे। आयोग के सदस्य न्यूनतम डॉक्टरेट तक पढ़े होंगे। उनकी भूमिका रिजल्टों के हस्ताक्षरों तक की नहीं होगी। आयोग को क्लर्क व अवर सचिवों के जंजाल से निकाला जाएगा। ऐसा सब कुछ सोचा था। पर अफसोस यह सब व्यवस्था के नागपाश के चलते नहीं कर पाई। और न ही अकेले यह काम हो सकता था।
मेरे कहने का मतलब यह नहीं कि पूरी व्यवस्था ही गलत है। इंटरव्यू देने वाले हतोत्साहित न हों। कुछ तो भगवान भी देख रहा होगा कि मेहनत जाया नहीं जाती। फिर चाहे वह मैं हूं या कोई और। आप असफल भी होते हैं तो अपने लिखित उत्तरों को बेझिझक मांगिए और इनको प्राप्त करके, नंबरों को देखकर स्व मूल्यांकन कर सकते हैं। नतीजे आने के तुरंत बाद ही अपनी आंसर शीट का अवलोकन कर लें।
मेरी सभी एचएएस के इंटरव्यू अभ्यार्थियों को शुभकामनाएं।
(लेखिका हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग की सदस्य रही हैं)

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