हिमाचल की मेडिसिन मार्केट का बड़ा खेल, सैंपल फेल होने पर भी घर घर पहुंच रही दवा।
हिमाचल प्रदेश में दवाइयों के सैंपल फेल होने के बावजूद, बाजार में उनकी बिक्री जारी रहने पर, हिमाचल हाईकोर्ट ने गंभीर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने सरकार के ड्रग कंट्रोलर से रिपोर्ट मांगी है ,और घटिया दवाओं की मैन्युफैक्चरिंग पर फटकार लगाई। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ,और न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने इस मामले में तीखी नाराजगी जताई।
अदालत ने पूछे है सवाल ।
वहीं, कोर्ट ने पूछा कि राज्य में सैंपल फेल होने के बावजूद, दवाइयां कैसे बिक रही हैं। ड्रग कंट्रोलर को अगली सुनवाई में इस बारे में विस्तार से जानकारी देने का निर्देश दिया गया है। अदालत ने यह भी पूछा ,कि दवाइयों के विश्लेषण के लिए प्राइवेट लैब को किस आधार पर प्रमाणपत्र जारी किया जाता है।
डिप्टी कंट्रोलर का स्पष्टीकरण
मंगलवार को, डिप्टी कंट्रोलर व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश हुए। उन्होंने बताया कि कई दवाइयां नमी, तापमान, पैकिंग और ट्रांसपोर्ट के दौरान खराब हो जाती हैं। अदालत ने इस पर नाराजगी व्यक्त की ,और पूछा कि दवाइयों को मार्केट में लाने से पहले कितनी बार टेस्टिंग की जाती है।
डिप्टी कंट्रोलर ने दिया स्पष्टीकरण,
डिप्टी कंट्रोलर ने अदालत को बताया, कि सरकार हर वर्ष केंद्र के साथ एक बार संयुक्त जांच करती है ,और आखिरी बार, तीन महीने पहले टेस्टिंग की गई थी। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट में बताया ,कि नियमानुसार दवाइयों के सैंपलों की हर महीने जांच होनी चाहिए, जो कि नहीं हो रही है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि ,कई नामी कंपनियों के उत्पाद भी है। मिस्वाक टूथ पेस्ट का सैंपल भी फेल पाया गया।
सरकार की ओर से आश्वासन,
डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने अदालत को आश्वस्त किया, कि नियम बनाने और दवाओं के घटिया निर्माताओं के खिलाफ सजा का प्रावधान बढ़ाने के लिए ,मामला केंद्र से उठाया जाएगा। उधर, महाधिवक्ता अनूप रत्न ने अदालत को बताया ,कि राज्य में वर्तमान में 10 निजी और 2 सरकारी लैब हैं। इनमें से सात सब-स्टैंडर्ड पाई गई हैं। कुछ लैबों के खिलाफ सरकार ने मामले दर्ज कर दिए हैं और नियमानुसार कार्रवाई की जा रही है।
लेकिन सवाल कुछ और भी हैं ?
एशिया का सबसे बड़ा फार्मा हब कहलवाने वाला, हिमाचल प्रदेश का उद्योगिक क्षेत्र बद्दी । अगर हम एक नजर पिछले कुछ वर्षों पर डालें , तो हजारों दवाइयों के सैम्पल लगातार फैल होते हुए नजर आएंगे ।
लगातार इस सिलसिले से एक तो प्रदेश की छवि , व वो कंपनियां जो अपनी गुणबत्ता के लिए जानी जाती हैं , इसका शिकार होती रही हैं । और अगर हम बात करें ,आगे आने वाले समय की तो पिछला रिकॉर्ड ये भी साबित करता है । कि ,आने बाले समय में फिर से किसी कंपनी के सैम्पल फैल नहीं होंगे ।
इस सारी कहानी के पीछे की आखिर वज़ह क्या है ? और इसका समाधान क्या है , यह एक पहेली की तरह आम जनता के दिमाग मे चल रहा है ।
न जाने कितने मासूम लोग इन सब स्टैंडर्ड दवाइयों के खेल में अपनी जीवनलीला समाप्त कर चुके होंगे , इसके आंकड़े भी न तो ड्रग विभाग के पास होंगें और न ही सरकार के किसी पटल पर मिलेंगे।
क्योंकि दवाइयां तो बनकर निकल जाती हैं ,देश के विभिन राज्यों ,और विदेशों तक । लेकिन कम गुणबत्ता की दवाइयों के सेवन से जब किसी मरीज पर पूरा असर ही नहीं पड़ेगा ,तो आप समझ सकते हैं ,कि वो दवा किस काम की।
सूत्रों की माने तो इस के पीछे एक बड़ा ड्रग मगिया काम करता है । और इसमें कुछ ड्रग कंट्रोलर विभाग के अधिकारियों से लेकर , ड्रग माफिया और उद्योगिक नगरी में सक्रिय कुछ दवा निर्माता , इस सारे खेल को चलाते हैं ।
ड्रग लाइसेंस देने से लेकर एक बड़ा माफिया काम करता है । सूत्र बताते हैं कि लाखों रुपयों की फीस ड्रग लाइसेंस देने के लिए निर्धारित की होती है ,जो कि स्केल ऑफ इन्वेस्टमेंट, प्रोडक्ट व अन्यों कई पहलुओं पर ऑफ द रिकॉर्ड भारी रकम बसूली जाती है ।
यह एक जांच का विषय है ,उसके वाद ही पता लगाया जा सकता है ,की आखिर कम गुणबत्ता बाली यह दवाइयां कैसे मार्किट में पहुंचती हैं । और सैम्पल फैल होने तक ,कितने लोग इसका शिकार बन चुके होते हैं ।
बद्दी में दवा कंपनियों के सैम्पल फैल होने से कई खतरे हो सकते हैं:
स्वास्थ्य जोखिम: फैल हुए सैम्पल से बनी दवाएं मरीजों के लिए हानिकारक हो सकती हैं, जिससे उनकी सेहत खराब हो सकती है ,या जान तक जोखिम हो सकता है।
दवा प्रतिरोधकता: फैल हुए सैम्पल से बनी दवाएं बीमारियों के खिलाफ, प्रभावी नहीं हो सकती हैं, जिससे दवा प्रतिरोधकता बढ़ सकती है।
आर्थिक नुकसान: फैल हुए सैम्पल से कंपनियों को ,आर्थिक नुकसान हो सकता है, जिससे उनकी प्रतिष्ठा और व्यवसाय पर असर पड़ सकता है।
नियामक कार्रवाई: फैल हुए सैम्पल के कारण नियामक एजेंसियां कार्रवाई कर सकती हैं, जैसे कि लाइसेंस रद्द करना या जुर्माना लगाना।
जनता का विश्वास खोना: फैल हुए सैम्पल से जनता का दवा उद्योग पर, विश्वास खोने का खतरा है, जिससे उद्योग की प्रतिष्ठा पर असर पड़ सकता है।
इन खतरों को देखते हुए, बद्दी में दवा कंपनियों को गुणवत्ता नियंत्रण पर ध्यान देना चाहिए। और नियामक एजेंसियों को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।