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यूनिफाइड पेंशन स्कीम नई पेंशन योजना की तरह ही प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा देती है

यूनिफाइड पेंशन स्कीम नई पेंशन योजना की तरह ही प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा देती है

भारत में पेंशन सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एकीकृत पेंशन योजना (UPS) की घोषणा की। यह नई योजना, पूर्ववर्ती नई पेंशन योजना (NPS) की तरह, सामाजिक सुरक्षा में प्राइवेटाइजेशन की ओर एक कदम और बढ़ाती है। जबकि UPS का उद्देश्य पेंशन कवरेज को बढ़ाना और वित्तीय बाजारों में निवेश को प्रोत्साहित करना है, यह सवाल भी खड़ा करता है कि क्या यह योजना वास्तव में पूर्ण सामाजिक सुरक्षा प्रदान कर पा रही है।

प्राइवेटाइजेशन की ओर एक कदम

एकीकृत पेंशन योजना, नई पेंशन योजना के समान, एक बाजार-लिंक्ड दृष्टिकोण अपनाती है। इस योजना के तहत, सरकार और कर्मचारियों द्वारा किए गए योगदान को विभिन्न वित्तीय साधनों जैसे कि शेयर और बॉंड्स में निवेश किया जाता है। यह निवेश रणनीति ऐसे लाभ उत्पन्न करने की कोशिश करती है, जो पेंशन के भुगतान का आधार बनते हैं। सार्वजनिक धन को प्राइवेट वित्तीय बाजारों में चैनलाइज करके, UPS प्राइवेटाइजेशन की प्रवृत्तियों को आगे बढ़ाती है, जैसा कि NPS ने किया।

बाजार-लिंक्ड योजनाओं की चुनौतियाँ

जहाँ बाजार-लिंक्ड योजनाएँ जैसे UPS और NPS उच्च लाभ की संभावना प्रदान करती हैं, वहीं वे महत्वपूर्ण अनिश्चितताओं को भी पेश करती हैं। पुराने पेंशन योजना (OPS) के विपरीत, जो अंतिम वेतन के आधार पर निश्चित पेंशन प्रदान करती थी, UPS किसी निश्चित रिटायरमेंट आय की गारंटी नहीं देती। इसके बजाय, पेंशन राशि निवेशित फंड्स की प्रदर्शन पर निर्भर करती है, जो कि बाजार की अस्थिरता और वित्तीय जोखिम को उजागर करती है।

इस प्राइवेटाइजेशन की दिशा में, जहां निवेश लाभ का बोझ व्यक्तिगत योगदानकर्ताओं पर होता है, OPS की स्थिरता की तुलना में बड़ी अस्थिरता हो सकती है। बाजार की उतार-चढ़ाव के दौरान रिटायरमेंट आय में महत्वपूर्ण परिवर्तन हो सकते हैं, जिससे रिटायरियों की वित्तीय सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।

सामाजिक सुरक्षा पर प्रभाव

बाजार-लिंक्ड योजनाओं जैसे UPS के साथ मुख्य चिंता यह है कि ये कितनी प्रभावी सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती हैं। जबकि प्राइवेटाइजेशन आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित कर सकता है और निवेश के अवसर प्रदान कर सकता है, यह रिटायरमेंट में स्थिर वित्तीय स्थिति की आवश्यकता को पूरा नहीं करता है। बाजार के प्रदर्शन पर निर्भरता का मतलब है कि रिटायरियों को आय में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है, विशेषकर आर्थिक मंदी के दौरान।

प्राइवेटाइजेशन की दिशा में, सरकार की सीधी भूमिका पेंशन प्रबंधन में कम होती जाती है। इससे ऐसा परिदृश्य उत्पन्न हो सकता है जहां सामाजिक सुरक्षा का जाल कमजोर हो जाए, और रिटायरियों को बाजार निवेश की जटिलताओं और जोखिमों का सामना अकेले करना पड़े।

पुरानी पेंशन योजना से तुलना

OPS, जो अंतिम वेतन के आधार पर निश्चित लाभ प्रदान करती थी, रिटायरियों के लिए एक अधिक पूर्वानुमानित और स्थिर आय प्रदान करती थी। हालांकि इसकी वित्तीय स्थिरता की आलोचना की गई थी, लेकिन OPS को कई सरकारी कर्मचारियों द्वारा एक सुरक्षित विकल्प माना गया। इसके विपरीत, UPS और NPS, प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा देकर बाजार-लिंक्ड लाभ और व्यक्तिगत जिम्मेदारी पर जोर देती हैं, जो सभी के लिए एक समान और स्थिर रिटायरमेंट आय की पूरी तरह से गारंटी नहीं करती।

निष्कर्ष: सामाजिक सुरक्षा मॉडल का पुनर्मूल्यांकन

जैसे-जैसे भारत प्राइवेटाइजेशन की दिशा में UPS जैसी योजनाओं के साथ आगे बढ़ रहा है, यह महत्वपूर्ण है कि इन मॉडलों की सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की प्रभावशीलता पर पुनर्मूल्यांकन किया जाए। जबकि प्राइवेटाइजेशन आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित कर सकता है और संभावित लाभ प्रदान कर सकता है, यह रिटायरियों के लिए स्थिर और पूर्वानुमानित आय की आवश्यकता को पूरी तरह से पूरा नहीं करता है।

नीति निर्माताओं को यह विचार करना चाहिए कि वर्तमान दिशा क्या सामाजिक सुरक्षा के मूल उद्देश्य को पूरी तरह से पूरा करती है या नहीं। जैसे-जैसे इस विषय पर चर्चा आगे बढ़ती है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि ये प्राइवेटाइज्ड योजनाएं रिटायरियों की समग्र भलाई पर कितना प्रभाव डालती हैं I

डॉ. अनिल कुमार स्वदेशी, राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा के राष्ट्रीय सलाहकार हैं और OPS की बहाली के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं।

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