प्रदेश बिजली बोर्ड की चार परियोजनाएं अभी भी खटाई में
सिविल विंग में ढांचागत बदलाव कर सकती है प्रदेश सरकार, ऊहल परियोजना से इसी महीने उत्पादन
बिजली बोर्ड लिमिटेड के चार प्रोजेक्ट अधर में लटके हुए हैं। पहले प्रदेश सरकार ने इन परियोजनाओं को पावर कारपोरेशन को सौंप दिया था, मगर उनसे वापस लेना भी सरकार की मजबूरी थी, परंतु हैरानी इस बात की है कि अब तक इन परियोजनाओं पर काम शुरू नहीं हुआ है, जबकि बोर्ड के पास पूरा सिविल विंग है। अब सरकार ने निदेशक सिविल की पोस्ट को खत्म कर दिया है, जिसके बाद यह चर्चा शुरू हो गई है कि अब कौन सी पोस्ट यहां खत्म होगी। बता दें कि इस महीने बोर्ड का सालों पुराना प्रोजेक्ट ऊहल उत्पादन में आ जाएगा। इसके बाद उसके पास चार परियोजनाएं बचती हैं और यह सभी चंबा जिला में हैं। इनमें साई कोठी-एक, साई कोठी-दो, देवी कोठी व हेल परियोजनाएं हैं। मामला यह है कि जर्मन बैंक केएफडब्ल्यू से इनके लिए फंडिंग हुई है और केंद्र सरकार ने इसमें 90 फीसदी ग्रांट दी है। यह ग्रांट केवल बिजली बोर्ड को मिली है और यदि किसी दूसरी एजेंसी को यह प्रोजेक्ट दिए जाते हैं, तो यह ग्रांट नहीं मिलेगी। ऐसे में सरकार फंसी हुई है कि आखिर बिजली बोर्ड से इन परियोजनाओं को कैसे करवाए। हालांकि बिजली बोर्ड इन चारों परियोजनाओं में सर्वे इन्वेस्टीगेशन का काम पूरा कर चुकी है, वहीं भूमि अधिग्रहण भी हो चुका है। फोरेस्ट क्लियरेंस भी इसमें मिल चुकी है बावजूद इसके अब तक बिजली बोर्ड इन पर काम शुरू नहीं कर पाया है। अगर यह प्रोजेक्ट लग जाते हैं, तो इससे बोर्ड को बड़ा फायदा मिल सकेगा।
सिविल इंजीनियरों की प्रोमोशन का दावा खत्म
सरकार ने डायरेक्टर सिविल का पद खत्म कर दिया है , जिससे सिविल इंजीनियरों की प्रोमोशन का दावा खत्म हो गया है। इसमें चीफ इंजीनियर हंै और उनके अधीन एसई व एक्सईएन भी काफी संख्या में लगे हुए हैं। इन पदों को सरकार ढांचागत बदलाव के तहत ला सकती है। अगर पावर कारपोरेशन में इनकी कमी दिखती है, तो ही इनको वहां के लिए बदला जा सकता है। पहले भी सरकार ने 51 विभिन्न पदों को समाप्त कर दिया है, जिनकी वापस कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
प्रोजेक्टों पर जल्द शुरू करवाना होगा काम
प्रोजेक्टों की बात करें तो साई कोठी परियोजना का चरण एक 15 मेगावाट का है, जबकि दूसरे चरण की क्षमता 18 मेगावाट की है। देवीकोठी की क्षमता 16 मेगावाट व हेल की 18 मेगावाट है। लगभग 560 करोड़ रुपए की ग्रांट केंद्र सरकार इसमें दे रही है, जबकि साढ़े 600 करोड़ रुपए का लोन जर्मन बैंक से मिलना है। ऐसे में अब सरकार का प्रोजेक्टों का काम जल्द शुरू करवाना होगा।