भीष्म पंचक व्रत महत्व महिलाओं ने गम्बर खड्ड में विसर्जित किये दीप
भीष्म पंचक व्रत महत्व
महिलाओं ने गम्बर खड्ड में विसर्जित किये दीप।
कुनिहार से हरजिन्दर ठाकुर की रिपोर्ट:-
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी 12 नवंबर को थी और इसी दिन से भीष्म पंचक व्रत शुरू हो जाता है। भीष्म पंचक व्रत कार्तिक पूर्णिमा तक यानी कि पांच दिनों तक चलता है। पांच दिन तक चलने के कारण इसे भीष्म पंचक कहते हैं। माना जाता है कि पांच दिनों तक घर पर अखण्ड दीपक प्रज्वलित किया जाता है। वीरवार शाम को बैकुंठ चौदस पर दीपक को किसी मंदिर में या फिर 365 बातियों को जला कर नदी में विसर्जित किया जाता है।ऐसा ही कुछ नजारा दयोथल पुल पर देखने को मिला,जब कुनिहार क्षेत्र की महिलाओं ने भीष्म पंचक व्रत के पश्चात बैकुंठ चौदस पर दीपक नदी में प्रवाहित किये।इसके पश्चात क्षेत्र के विभिन्न मंदिरों में भी दीपक जलाएं गए।
पुराणों के अनुसार, पांच दिनों के इस व्रत को भीष्म ने भगवान वासुदेव से प्राप्त किया था और व्रत श्री कृष्ण ने प्रारंभ कराया था। धार्मिक मान्यता के अनुसार जो भी व्यक्ति भीष्म पंचक के दौरान व्रत और पूजा अर्चना करता है, उसे शुभ फल प्राप्त होता है।
इस व्रत में पहले दिन पांच दिन के व्रत का संकल्प लिया जाता है। इस दिन देवताओं, ऋषियों और पितरों को श्रद्धा सहित याद किया जाता है। इस व्रत में लक्ष्मीनारायण जी की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा की जाती है। वहीं दूसरे दिन कटि प्रदेश का बिल्वपत्रों से, तीसरे दिन घुटनों का केतकी पुष्पों से, चौथे दिन चरणों का चमेली पुष्पों से तथा पांचवे दिन सम्पूर्ण अंग का तुलसी की मंजरी से पूजा की जाती है।
एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि के बाद इस व्रत का संकल्प लिया जाता है।
दीवार पर मिट्टी से सर्वतोभद्र की वेदी बनाकर कलश की स्थापना की जाती है।
इसके बाद चौकी पर भगवान कृष्ण का चित्र और भीष्म पितमाह की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित की जाती है।
भगवान कृष्ण और भीष्म पितामह को फल- फूल अर्पित करने के पश्चात
अखंड दीपक पांच दिन तक जलता है।
प्रतिदिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का यथासंभव जाप करना चाहिए।
एक किंवन्दन्ति के अनुसार
भीष्म पंचक व्रत को भीष्म पितामह से भी जोड़ कर देखा जाता है।जब भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर थे तो उत्तरायण में बैकुंठ चौदस को ही सांसों से मुक्ति मिली थी व श्री हरि बैकुंठ धाम में हरि चरणों मे स्थान मिला था।