मिड-डे मील वर्करों के पास केवल संघर्ष का रास्ता
चंबा)। मिड-डे मील स्कीम को केंद्र सरकार निजी हाथों में दे रही है। देश में 447 एनजीओ मिड-डे मील स्कीम में काम करते हैं। अकेला अक्षयपात्र एनजीओ 1.5 करोड़ बच्चों को मिड-डे मील बना रहा है। इसका सीधा मतलब है कि सरकार इस योजना को खत्म करके निजी हाथ में सौंपना चाहती है। यह बात सीटू जिला अध्यक्ष नरेंद्र ने मिड-डे मील वर्कर यूनियन संबंधित सीटू इकाई तीसा के सम्मेलन में कही। उन्होंने कहा कि हाल ही में केंद्र सरकार की ओ से पेश किया बजट भी इसी ओर इशारा कर रहा है कि योजना के लिए 300 करोड़ रुपये की कटौती की गई है। निचले स्तर पर योजना कर्मी गंभीर शोषण का शिकार हैं। योजना में विधवाएं और गरीब परिवारों से संबंध रखने वाले काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि मिड-डे मील वर्कर को मानदेय के नाम पर 3500 रुपये राज्य सरकार जबकि 1000 रुपये केंद्र सरकार देती है। दो माह से केंद्र सरकार का हिस्सा उन्हें नहीं मिला है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि इन वर्करों को न्यूनतम वेतन 26000 रुपये लागू किया जाए। साथ ही छुट्टियों का प्रावधान किया जाए। सरकार से नाराज मिड-डे मील वर्करों के पास केवल संघर्ष का रास्ता बचा है। आने वाले समय में ये वर्कर हड़ताल पर जा सकते हैं। इस दौरान यूनियन की तीसा कार्यकारिणी का गठन किया गया। इसमें दीप राज को अध्यक्ष, सचिव ढालो देवी और कोषाध्यक्ष ललिता को चुना गया।