सरकारी भूमि का मुआवजा देने से इन्कार नहीं कर पाएंगी प्रोजेक्ट एजेंसियां, लेकिन होना चाहिए ये रिकॉर्ड
फोरलेन प्रोजेक्ट एजेंसियां प्रभावितों को यह कहकर मुआवजे के लिए मना नहीं कर सकती कि यह स्ट्रक्चर सरकारी भूमि पर बने हैं। बशर्ते सरकार भूमि पर कब्जे की राजस्व रिकॉर्ड में एंट्री हो या संबंधित कब्जाधारक पंचायत को गृहकर देता हो
सरकारी भूमि पर बने घर और दुकान अगर फोरलेन निर्माण की जद में आ रहे हैं तो प्रोजेक्ट एजेंसियां कब्जाधारक को स्ट्रक्चर का मुआवजा देने से इन्कार नहीं कर सकतीं। बशर्ते सरकार भूमि पर कब्जे की राजस्व रिकॉर्ड में एंट्री हो या संबंधित कब्जाधारक पंचायत को गृहकर देता हो। नियमों के अंतर्गत सिर्फ उन परिवारों को मुआवजे नहीं मिल सकता, जिनकी न तो राजस्व रिकॉर्ड में कब्जे की एंट्री है और न पंचायत को हाउस टैक्स देते हैं। दरअसल पिछले दो सालों से मटौर से शिमला और पठानकोट से मंडी के लिए फोरलेन निर्माण का कार्य चल रहा है।
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने टेंडर अवार्ड करने के बाद विभिन्न निर्माण कंपनियों को फोरलेन निर्माण का कार्य सौंपा हुआ है। इसके अलावा मनाली से किरतपुर और पांवटा में भी फोरलेन का निर्माण हुआ है। निर्माण कार्य के दौरान सरकारी भूमि पर बने सैकड़ों घरों और दुकानों पर बुलडोजर तो चला दिए गए, लेकिन प्रभावितों को यह कहकर मुआवजा नहीं दिया गया कि यह स्ट्रक्चर सरकारी भूमि पर बने हैं। राजस्व विभाग और कानून के जानकार बताते हैं कि भले मकान और दुकान सरकारी भूमि पर हैं, लेकिन राजस्व रिकॉर्ड में कब्जे की एंट्री है या संबंधित परिवारों ने पंचायतों का टैक्स का