हिमाचल से नहीं टला अभी खतरा, पहाड़ों में गूंज रही चीखें, अगर नहीं संभले तो हो जाएगा सब खत्म
हिमाचल से नहीं टला अभी खतरा, पहाड़ों में गूंज रही चीखें, अगर नहीं संभले तो हो जाएगा सब खत्म
हिमाचल प्रदेश को इस बार मानसून ने जख़्मों का वो तूफ़ान दिया जिसे शायद ही कोई पीढी भूल पाएंगी। पहाड़ों पर बरसी बारिश ने नदियों को उफान पर ला दिया, धरती को दरका दिया और इंसानी ज़िंदगियों को निगल लिया। काले महीने की आखिरी काली रात ने छोटी के धर्मपुर को मानों विरान कर दिया, यहां बीती रात ऐसी तबाही बरपी कि सुबह मंजर सबको डरा गया। बसें टूट गई थी. गाड़िया पुल बह गए थे। जहा बस स्टैंड था वहा बुनियादी ढांचा मानो ढेर हो गया हो, कुछ लोग लापता हो गए। सुंदरनगर के निहरी में तीन लोगों को मलबे ने निगल लिया। कुछ लोग घायल हो गए। आज पूरा दिन हिमाचल में बस यही चर्चा थी कि आखिर ये क्या हो रहा है क्यों हो रहा है और कब थमेगा। क्या और क्यों का जवाब हम सब जानते हैं- इन तीनों ही सवालों का जवाब हम सब जानते हैं। ये तवाही हो रही है। मनुष्य के मचाए उत्पात पर अब प्रकृति रो रही है, और थमेगी तब जब मनुष्य प्रकृति से छेड़छाड़ करना छोड़ देगा। धर्मपुर का बसस्टेंड जो आज तबाह हो गया उसकी वजह भी यही है नदी किनारे किया गया निर्माण। यानि की अगर हमने सूझ बूझ से निर्माण किया होता तो शायद इतनी करोड़ों की तबाही न होती।
20 जून से लेकर 15 सितंबर तक हिमाचल ने सिर्फ दर्द सहा है, और ये दर्द अब आंकड़ों में कैद हो चुका है, लेकिन धरातल पर तबाही का मंजर काफी भयानक है। देवभूमि में सिर्फ़ तीन महीनों में 409 मासूम जानें चली गईं। 473 लोग घायल हो गए और अनगिनत लोग लापता हैं। यह आंकड़े सुनने में पढ़नें में शायद आपको उतने ज्यादा न डरा रहे हों, लेकिन इनके पीछे चीखते बच्चे, रोती माएं