हिमाचल प्रदेश की शांत, चीड़ की सुगंध वाली पहाड़ियों में, एक राजनीतिक तूफ़ान लगातार बन रहा है, जो अक्सर विनम्र मुस्कुराहटों और एकता के सार्वजनिक प्रदर्शनों के पीछे छिपा रहता है। इसके केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के भीतर एक क्लासिक सत्ता संघर्ष है—एक ओर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू, जो छात्र राजनीति से उभरे एक जमीनी नेता हैं, और दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, प्रतिभा सिंह, जो एक शक्तिशाली राजनीतिक राजवंश की उत्तराधिकारी हैं।
यह दरारें उसी क्षण खिंच गई थीं जब कांग्रेस पार्टी ने 2022 के अंत में राज्य में जीत हासिल की थी। छह बार के दिग्गज मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की धर्मपत्नी, प्रतिभा सिंह ने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अभियान का नेतृत्व किया था। सहानुभूति की लहर पर सवार होकर और अपने पति की beeindrucksvoll विरासत का लाभ उठाते हुए, “हॉली लॉज” खेमे—परिवार का प्रतिष्ठित निवास—ने उन्हें मुख्यमंत्री के लिए स्वाभाविक पसंद के रूप में देखा। हालांकि, कांग्रेस आलाकमान ने वीरभद्र परिवार के लंबे समय से प्रतिद्वंद्वी रहे सुक्खू को चुना, उनकी संगठनात्मक वफादारी को पुरस्कृत किया और वंशवादी राजनीति से दूर जाने का संकेत दिया।
इस फैसले ने एक नाजुक और अक्सर तनावपूर्ण द्वैध शासन का निर्माण किया। जहाँ सुक्खू सरकार चला रहे थे, वहीं प्रतिभा सिंह ने पार्टी संगठन को नियंत्रित किया, जिससे सत्ता के दो समानांतर केंद्र बन गए। यह खींचतान जल्द ही स्पष्ट हो गई, जब प्रतिभा सिंह और उनके बेटे, लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह के सार्वजनिक बयानों में सरकार की गति की सूक्ष्म आलोचना की गई और यह आरोप लगाया गया कि पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी और उपेक्षा की जा रही है—यह सीधे मुख्यमंत्री के अधिकार को एक चुनौती थी।
यह सुलगता हुआ संघर्ष फरवरी 2024 में राज्यसभा चुनावों के दौरान नाटकीय रूप से फट गया। छह कांग्रेस विधायकों की क्रॉस-वोटिंग, जिससे पार्टी के उम्मीदवार की अपमानजनक हार हुई, ने गहरी दरारों को उजागर कर दिया और सुक्खू सरकार को पतन के कगार पर ला खड़ा किया। यह विद्रोह असंतुष्ट गुट का एक स्पष्ट संदेश था। विक्रमादित्य सिंह ने “अपमान” और अपने पिता की विरासत के प्रति सम्मान की कमी का हवाला देते हुए अपने मंत्रालय से इस्तीफा दे दिया, केवल दिल्ली से भेजे गए पार्टी पर्यवेक्षकों के साथ तनावपूर्ण बातचीत के बाद इसे वापस ले लिया। प्रतिभा सिंह ने खुद टिप्पणी की कि विद्रोहियों की शिकायतें जायज थीं, जिससे आंतरिक मतभेद और भी उजागर हो गया।
हालांकि विद्रोहियों को अयोग्य घोषित किए जाने के बाद सरकार संकट से बच गई, लेकिन यह शांति असहज रही है। कांग्रेस आलाकमान ने 2024 के अंत में पूरी प्रदेश पार्टी समिति को भंग कर दिया, केवल प्रतिभा सिंह को उनके पद पर छोड़ दिया, एक ऐसा कदम जिसे टूटे हुए संगठन को फिर से स्थापित करने के प्रयास के रूप में देखा गया।
अब, इस राजनीतिक गाथा में एक नया अध्याय शुरू होने वाला है। मुख्यमंत्री सुक्खू ने हाल ही में घोषणा की है कि नवंबर की शुरुआत तक एक नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति की जाएगी। इसे व्यापक रूप से सत्ता को अंततः मजबूत करने के उनके कदम के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें संभावित रूप से पार्टी के मुखिया के रूप में एक वफादार को स्थापित किया जाएगा, जिससे दोहरी सत्ता संरचना समाप्त हो जाएगी। अपनी ओर से, प्रतिभा सिंह वीरभद्र की विरासत के महत्व पर जोर देना जारी रखती हैं, सभी को उस भावनात्मक और राजनीतिक पूंजी की याद दिलाती हैं जो इसमें है। जैसे-जैसे पार्टी एक महत्वपूर्ण संगठनात्मक सुधार की ओर बढ़ रही है, हिमाचल कांग्रेस पर नियंत्रण की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। शिमला की शांत पहाड़ियों में, राजनीतिक सिंहासन का खेल जारी है, जिसके हर कदम पर पैनी नजर रखी जा रही है, क्योंकि यह न केवल एक पार्टी के भविष्य, बल्कि एक राज्य के शासन को भी निर्धारित करेगा।
Nation News Desk
Remember, each pitch sent is an opportunity to present your brand or business to a new audience, as well as build new relationships within the media. So if you have any Pitch around you write us at : editor@nationnews.in
